
गुरमा-मारकुंडी में गौशाला और आश्रय स्थल नदारत, शासन के आदेशों की उड़ रही धज्जियां
गुरमा-मारकुंडी में गौशाला और आश्रय स्थल नदारत, शासन के आदेशों की उड़ रही धज्जियां
•-निराश्रित,बेसहारा, पशुओं की भरमार, मुसीबत बने जान के दुश्मन
•-शासनादेश के बावजूद नहीं दिख रही कोई व्यवस्था
गुरमा, सोनभद्र (अवधेश कुमार गुप्ता)
प्रदेश सरकार ने निराश्रित,बेसहारा पशुओं के संरक्षण हेतु शहरी व ग्रामीण निकायों में कान्हा गौशालाओं और आश्रय स्थलों के संचालन के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी कर रखे हैं, फिर भी सोनभद्र के गुरमा मारकंडी क्षेत्र में उन दिनों आदेशों का पालन नहीं होता दिख रहा है।खुलेआम घूमते पशु न सिर्फ राहगीरों के लिए मुसीबत तथा खतरा बने हुए हैं बल्कि आए दिन हादसो का कारण भी बन रहे हैं। हाल ही में उत्तर प्रदेश शासन द्वारा नगर विकास अनुभाग-7 लखनऊ से निर्गत पत्र संख्या 3340/9-7-2025-41(ज)/ 2021 दिनांक 23 जुलाई 2025 के माध्यम से सांप निर्देश दिए गए हैं कि बेसहारा/निराश्रित पशुओं के लिए कान्हा गौशालाएं,पशु आश्रय स्थल और कांशीराम गौशालाओं का संचालन अनिवार्य रूप से किया जाए। इसके अतिरिक्त शासन ने यह भी निर्देशित किया है कि जो पशुपालक जानबूझकर दूध निकालने के बाद अपने पशुओं को सड़कों या सार्वजनिक स्थलों को छोड़ देते हैं, उनके खिलाफ भारी जुर्माना की कार्रवाई की जाये। इसके अलावा नगर निकायों को निर्देश दिया गया है कि ऐसे पशुओं के कारण होने वाली समस्याओं जैसे-मल-मूत्र,गोबर, सड़कों पर गंदगी,नालियों का अवरूद्ध होना और यातायात में बाधा की भरपाई पशु मालिकों से वसूली गई धनराशि से की जाये। निर्देशों में कहा गया है कि प्रत्येक पशु के छोड़े जाने की तिथि,मलिक का नाम-पता और उसे पर लगाए गए जुर्माने की जानकारी अनिवार्य रूप से दर्ज की जाए लेकिन गुरमा मारकंडी जैसे क्षेत्रों में स्थिति इसके बिल्कुल उलट है। यहां न तो कोई गौशाला है,न तो कोई कान्हा आश्रय स्थल और न ही पशुओं की निगरानी व्यवस्था। क्षेत्र में हर ओर निराश्रित,बेसहारा पशु झुंड के रूप में घूमते नजर आते हैं जो ट्रैफिक बाधित करने के साथ-साथ स्कूली बच्चों व बुजुर्गों के लिए दुर्घटना का कारण बनते हैं।जनपद सोनभद्र के गुरमा-मारकुंडी क्षेत्र में स्थित जिला कारागार के चारों ओर इन दिनों आवारा पशुओं का अड्डा बन गया है। सड़क पर झुंड के झुंड गोवंश न केवल यातायात में बाधा बन रहे हैं, बल्कि कई बार लोगों की जान के लिए भी खतरा बन चुके हैं। स्थिति इतनी गंभीर हो चुकी है कि स्थानीय लोग खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं।
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इस पर स्थानीय नगर पंचायत प्रशासन, खासतौर से अधिशासी अधिकारी (E.O.), पूरी तरह मौन साधे हुए हैं। ईओ साहब न तो फोन उठाते हैं, न ही मौके पर पहुंचते हैं। कार्यवाही के नाम पर सिर्फ कागजी खानापूर्ति हो रही है।
*शासन के सख्त निर्देश, लेकिन जमीनी स्तर पर ‘शून्य’ पालन*
नगर विकास अनुभाग-7 लखनऊ द्वारा दिनांक 23 जुलाई 2025 को जारी आदेश संख्या 3340/नौ-7-2025-41(ज)/2021 में साफ कहा गया है कि नगर निकायों को बेसहारा गोवंश के लिए कांहा गौशाला/आश्रय स्थल संचालित करना अनिवार्य है।इसके अलावा,
सड़कों पर गोवंश छोड़ने वाले पशुपालकों पर जुर्माना लगाया जाए,
सभी जानकारी — गोवंश का नाम, मालिक, स्थान, जुर्माने की तिथि दर्ज की जाए तथा वसूली गई धनराशि का उपयोग पशु आश्रय केंद्र के संचालन में किया जाये लेकिन गुरमा नगर पंचायत के ईओ साहब न तो इन निर्देशों का पालन करवा रहे हैं, न ही जनता की शिकायतों पर ध्यान दे रहे हैं।स्थानीय नागरिकों ने शासन प्रशासन से सवाल उठाया है कि जब नियमावली में साफ है कि प्रत्येक निकाय को पशुओं के लिए आश्रय स्थल, गोवंश देखरेख केंद्र तथा खर्च वहन की व्यवस्था करनी है तो फिर सोनभद्र के इन क्षेत्रों में जिम्मेदारो की चुप्पी क्यों? स्थानीय नागरिकों ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि रात में सड़क पर निकलना मुश्किल हो जाता है। कई बार लोग गिर चुके हैं ।क्या सरकार की योजनाएं सिर्फ कार्यों में ही चल रही है? प्रशासनिक विफलता या लापरवाही? क्या नगर पंचायत या जिला प्रशासन ने कभी गुरमा मारकुंडी में स्थलीय निरीक्षण किया? बेसहारा ,निराश्रित पशुओं से होने वाले हादसों का जिम्मेदार कौन है? गौशालाओं और कान्हा केंद्रों के नाम पर मिलने वाला बजट कहां जा रहा है? साफ है कि शासन द्वारा जारी निर्देश और अधिनियम-उत्तर प्रदेश नगर निगम अधिनियम 1959, नगर पालिका अधिनियम 1916 का अनुपालन पूरी तरह ठप है। पशुपालकों से न तो जुर्माना लिया जा रहा है और न किसी जिम्मेदार अधिकारी की जवाबदेही ही तय हो रही है। ऐसे में अब जरूर है कड़ी कार्रवाई और स्थायी समाधान की ताकि लोग राहत की सांस ले सके और शासन की मंशा जमीनी हकीकत बन सके।