झारखंड: 1 से 30 जून तक चलेगा चाइल्ड लेबर रेस्क्यू ड्राइव; थमेगा बालश्रम; आम लोग भी चाइल्ड लेबर का रेस्क्यू कर सकता है।
बाल मजदूरी की रोकथाम और उन्मूलन के लिए बड़ा कदम उठाया जा रहा है। 1 से 30 जून तक चाइल्ड लेबर को लेकर रेस्क्यू ड्राइव चलेगा। यह अभियान रेलवे एरिया में चलेगा। बाल श्रम रोकथाम की दिशा में सार्थक पहल है।
बाल मजदूरी की रोकथाम और उन्मूलन के लिए बड़ा कदम उठाया जा रहा है। 1 से 30 जून तक चाइल्ड लेबर को लेकर रेस्क्यू ड्राइव चलेगा। यह अभियान रेलवे एरिया में चलेगा। बाल श्रम रोकथाम की दिशा में सार्थक पहल है। यह निर्णय राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग की वर्चुवल मीटिंग में हुआ। इसमें पूरे देश से सीडब्ल्यूसी के मेंबर शामिल हुए थे। आयोग के चेयरमैन प्रियांक कानूनगो ने कहा कि सीडब्ल्यूसी के सामने जो स्टेटमेंट जो होगा उसी के आधार पर पुलिस प्राथमिकी दर्ज करेगी। अलग से पुलिस को बयान लेने की जरूरत नहीं है। सीडब्ल्यूसी के आधार पर कार्रवाई होगी। इस संबंध में एनसीपीसीआर डीजीपी को पत्र लिखेगा। साथ ही आम लोग भी चाइल्ड लेबर का रेस्क्यू कर सकता है किसी की परमिशन की जरूरत नहीं। उसके बाद सीडब्ल्यूसी के सामने प्रस्तुत कर सकता है।
वैश्विक समस्या है बाल मजदूरी
मौजूदा वक्त बाल मजदूरी एक प्रमुख वैश्विक समस्या है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन आईएलओ और यूनिसेफ के मुताबिक वर्ष 2016 में भारत में 9.40 करोड़ बाल मजदूर थे जो वर्ष 2022 तक बढ़कर 16 करोड़ तक पहुंच गए। संस्थाओं का मानना है कि बाल मजदूरी का मुख्य कारण गरीबी है। गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर कर रहे परिवार बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए अपने बच्चों को भी काम पर लगाते हैं। कहा जाता है कि पुलिस द्वारा सख्ती से कार्रवाई नहीं किया जाना भी बाल मजदूरी उन्मूलन में बाधक है। दरअसल पुलिस बाल मजदूरों को रेस्क्यू करती है और माता-पिता को सौंप देती है। माता-पिता दोबारा उन्हें काम पर लगा देते हैं। उनके पुर्नवास, शिक्षा और स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं दिया जाता है।
झारखंड में भी एक गंभीर समस्या
झारखंड में भी बाल मजदूरी एक गंभीर मानवीय समस्या है। वैसे तो बीते 10 वर्षों में बाल मजदूरों की संख्या में कमी आई लेकिन अब भी उनकी संख्या 90 हजार से ज्यादा। हालांकि 2001 की जनगणना के मुताबिक झारखंड में 4.7 बाल मजदूर थे। झारखंड से व्यापक पैमाने पर बच्चों को मानव तस्करों द्वारा झांसे में लेकर दूसरे राज्य में भी भेज दिया जाता है जहां यह बच्चे घरेलू नौकर, ईट भट्ठा मजदूरी या फैक्ट्रियों में श्रमिक का काम करते हैं। झारखंड में भी बच्चे व्यापक पैमाने पर ईंट भट्ठा में जोखिम भरे परिस्थितियों में काम करते हैं। ऐसे में 1 से 30 जून के बीच चाइल्ड लेबर रेस्क्यू ड्राइव चलाने से बाल श्रम के खिलाफ कामयाबी मिल सकेगी और बच्चों का पुर्नवास हो सकेगा।