
कुंडवासिनी धाम उपेक्षा का शिकार ।हाई मास्क लाईट बनी शोपीस।
कुंडवासिनी धाम उपेक्षा का शिकार ।हाई मास्क लाईट बनी शोपीस।
सोनभद्र (विनोद मिश्रा/सेराज अहमद)
घोरावल विधानसभा क्षेत्र स्थित कुंडवासिनी धाम नवरात्रि के समय में भी उपेक्षा का शिकार है।स्थानीय श्रद्धालुओं में उपेक्षा को लेकर आक्रोश बढ़ता जा रहा है।
बताया गया कि हार्ड मास्क लाइट केवल शो पीस बनी हुई है।इसे लगाकर बंदर बाट कर इतिश्री कर ली गई।रात्रि के समय में परिसर में अंधेरा व्याप्त रहता है।विद्युत व्यवस्था भी नाकाफी है।परिसर में ग्राम पंचायत द्वारा बने सार्वजनिक शौचालय अपनी दुर्गति को प्राप्त हो चुका है।पानी और लाइट के अलावा साफ सफाई का अभाव है।जिसके कारण यहां आने वाले श्रद्धालुओं को काफी संकट का सामना करना पड़ता है।खासकर महिलाओं को लेकर काफी समस्या होती है।मां कुंडवासिनी की महिमा किसी से छिपी नही है यहां पूरे वर्ष श्रद्धालुओं का आगमन होता रहता है।यहां विभिन्न प्रकार के कर्मकांड मुंडन, अन्नप्राशन,उपनयन, विवाह आदि का आयोजन होता रहता है।
स्थानीय पुजारियों की माने तो इस बार सोन नदी के पुल से आवागमन चालू होने से आगामी अष्टमी और नवमी को भारी भीड़ श्रद्धालुओं की देखने को मिलेगी।लेकिन प्रशासन की अनदेखी के चलते यहां दुर्व्यवस्था व्याप्त है।जिसपर किसी अधिकारी की निगाह नही पड़ रही है।जिसको लेकर स्थानीय लोगों में आक्रोश व्याप्त हो रहा है।कुड़ारी मंदिर सेवा समिति के अध्यक्ष अभिमन्यु गिरी बताते हैं कि कुंडवासिनी धाम में श्रद्धालुओं द्वारा दर्शन पूजन किया जाता रहा है।इस बार नवरात्रि के अवसर पर मंदिर परिसर दुर्व्यवस्थाओं में है।विद्युत व्यवस्था,परिसर में लगी लाइट एवं साफ सफाई को लेकर प्रशासन क्यों मौन है यह समझ से परे है।
बताते चलें कि मां कुंडवासिनी को कूष्मांडा के रूप में पूजन किया जाता रहा है।यह क्रम से चौथे स्थान पर नवरात्रि में आती हैं।मां कुंडवासिनी की प्रतिमा उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश के बार्डर पर स्थित कुंडवा नाले से निकली हैं।इसके लिए तत्कालीन राजा बालेंद्र शाह के स्वप्न में मां ने अपनी महिमा दिखाई।राजन द्वारा मां की प्रतिमा को वहां से निकलवाकर हाथी पर रखकर ले जाया जाने लगा लेकिन आज के कुड़ारी नामक स्थान पर यह हाथी रुक गई।फिर उठी नही ।प्रबुद्ध वर्ग ने बताया कि इसी स्थान पर मां कुंडवासिनी की प्रतिमा को स्थापित कर देना उचित होगा।हालांकि कोई ठोस प्रमाण इस संबंध में नही है।लेकिन यह तय है कि कुंडवा नामक एक नाले से यह प्रतिमा निकली और मां कुंडवासिनी नाम से विख्यात हुईं।
और इस प्रकार से प्रतिमा की स्थापना एक वृक्ष के नीचे की गई। बताया गया कि यह मंदिर पूरी तरह से पत्थर से बना हुआ है।गर्भ गृह के निर्माण में सीमेंट का प्रयोग नही हुआ है।आने जाने के लिए मंदिर में एक ही दरवाजा है।श्रद्धालुओं की बढ़ती भीड़ को देखते हुए कई बार दूसरा दरवाजा खोलने का प्रयास किया गया लेकिन सफलता नही मिली।
इस मंदिर के आस पास कई खंडित मूर्तियां आज भी मंदिरों में स्थापित हैं ऐसा लगता है कि यह क्षेत्र अपने आप में कभी विकसित और समृद्ध मंदिरों मुर्तियो वाला क्षेत्र रहा होगा।