
संत दरस को जाईएं -तजि ममता अभिमान, ज्यों-ज्यों पग आगे बढैं -कोटि यज्ञ समान” – संत लाले महाराज
-संत दरस को जाईएं -तजि ममता अभिमान, ज्यों-ज्यों पग आगे बढैं -कोटि यज्ञ समान” संत लाले महाराज
सोनभद्र (विनोद मिश्रा/सेराज अहमद)
परमहंस आश्रम शक्तेशगढ़ के महात्मा संत लाले महाराज बतायें कि गुरु पूर्णिमा के दिन वास्तविक महापुरुष के दर्शन मात्र से ही पूरे साल भर की बैटरी चार्ज हो जाती हैं
श्री महाराज जी ने कहा कि सत्य क्या है, धर्म क्या है,यज्ञ क्या है, कर्म क्या है, वर्ण क्या है इत्यादि सभी चीजें सत्संग के माध्यम से प्राप्त होती है, गुरु पूर्णिमा के दिन संतों की वाणी सुनना और ग्रहण करना ,उनके बताए गए मार्ग पर चलना ही भजन की प्रारंभिक अवस्था है,
उन्होंने आगे बताया कि जीव क्या है, माया क्या है, ब्रह्म क्या है, ईश्वर का निवास स्थान कहां है, यह सब आध्यात्मिक चीजें संतों की शरण में जाने पर ही प्राप्त होती है, ईश्वर का निवास स्थान हृदय -देश है, और यह सद्गुरु के सानिध्य में जाने पर ही मिलता है गुरु महाराज स्वप्न के माध्यम से दिखाने लगते हैं चलाने लगते हैं,”संगत की दोऊ भली -एक संत एक राम,राम जो दाता मुक्ति दें-संत जपावैं नाम अर्थात जहां भगवान मुक्ति प्रदान करते हैं वहीं संतो के सानिध्य ईश्वर के नाम का जाप ओम, राम,शिव से भागवत पाठ में प्रवेश मिल जाएगा जो महापुरुषों के प्रभाव से योग क्षेम होने लगता है हमारा धर्म शास्त्र यथार्थ गीता है पूरी पूरी साधन पद्धति है परमात्मा है तो किंतु अनन्य भक्त के द्वारा जन सुनने और योगक्षेम की पूरी जिम्मेदारी स्वयं भगवान करने लगते हैं और साधक का मार्ग भी प्रशस्त होने लगता है गुरु पूर्णिमा पावन पर्व पुरातन काल से ही गुरु और शिष्य की परंपरा का निर्वाहन होता चला आया है पूरे साल भर सभी शिष्यों को अपने आराध्य योगेश्वर महापुरुष के दर्शन पूजन के लिए लालयित रहते हैं यथार्थ गीता के प्रणेता स्वामी अड़गड़ानंद जी महाराज विश्व स्तर के महापुरुषों में से प्रमुख हैं स्वामी जी के दर्शन मात्र से ही जन्म-जन्मांतर के दुःखों का मार्ग कट जाता है परम पूज्य संत लाले महाराज जी ने अंत में बताया कि परमात्मा का निवास स्थान हृदय -देश में स्थित है ,अन्यत्र ढूंढने पर भी यह कहीं नहीं प्राप्त होंगे, सिर्फ वास्तविक महापुरुषों के सानिध्य में रहते हुए, संतों की सेवा करते हुए, आध्यात्मिक पथ की जागृति होने लगती है, और भगवान हृदय- देश में ही अनुभव के माध्यम से, स्वप्न के माध्यम से, आकाशवाणी के माध्यम से, साधक के मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करते हैं।