तिलस्मी दुनिया से निकले ऐतिहासिक रहस्यों का खजाना चंद्रकांता की विजयगढ़ किला।

तिलस्मी दुनिया से निकले ऐतिहासिक रहस्यों का खजाना चंद्रकांता की विजयगढ़ किला।
सोनभद्र (विनोद मिश्रा/सेराज अहमद)
जिले में कैमूर पहाड़ियों की गोद में बसा राजकुमारी चंद्रकांता विजयगढ़ दुर्ग सदियों से रहस्यों का पिटारा रहा है।इसलिए इतिहासकारों, साहित्य प्रेमियों और साहसिक यात्रियों का केंद्र रहा है।
बता दें जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूर राज कुमारी चंद्रकांता का प्राचीन किला, जो लगभग 400 फीट ऊंची चट्टानी पहाड़ी पर खड़ा है, जोआज भी देवकीनंदन खत्री के अमर उपन्यास ‘चंद्रकांता’ की प्रेरणा स्रोत के रूप में विख्यात है। इस दुर्ग की दीवारों में छिपे गुफा चित्र, शिलालेख और कभी न सूखने वाले तालाब न केवल ऐतिहासिक धरोहर हैं, बल्कि लोककथाओं में खजाने और तिलस्मों की अनगिनत कहानियां भी समेटे हुए हैं!
स्थानीय लोग गुफाओं में छिपे ‘खजाने’ और ‘पवित्र स्थानों’ की चर्चा करते हैं जो दुर्ग को और भी रहस्यपूर्ण बनाते हैं। हालांकि, जंगली इलाके होने से पहुंच थोड़ी चुनौतीपूर्ण है, लेकिन राबर्ट्सगंज से सड़क मार्ग आसान है।
प्राचीन गौरव और रहस्यमयी निर्माण- विजयगढ़ दुर्ग का इतिहास पांचवीं शताब्दी तक जाता है, जब कोल राजाओं ने इसका निर्माण करवाया था। कुछ लोककथाओं के अनुसार, यह असुरों और दानवों के शिल्पकारों द्वारा एक रात में बनाया गया था। एक ऐसी दंतकथा जो चुनार किले और अन्य प्राचीन स्थलों से जुड़ी हुई है। बाद में चंदेल राजाओं के शासनकाल में यह दुर्ग अगोरी-बड़हर क्षेत्र का प्रमुख सामरिक केंद्र बना। किले के लाल पत्थर के स्तंभों पर समुद्रगुप्त के अधीन विष्णुवर्धन का नाम खुदा है, जो गुप्त काल की समृद्धि की गवाही देता है। दुर्ग के भीतर चार बारहमासी तालाब – जिनमें मीरा सागर और राम सागर प्रमुख हैं – आज भी वर्षा ऋतु में कांवरियों के लिए जल स्रोत बने रहते हैं। जहां से हर साल सावन मास में कावरिया जल चढ़ाने के लिए भरते हैं और गुप्त काशी के नाम से विख्यात शिवद्वार में भोले बाबा को चढ़ाते हैं।
लेकिन असली आकर्षण किले का ‘रंग महल’, जो उपन्यास में राजकुमारी चंद्रकांता का निवास बताया गया है। खंडहर अवस्था में मौजूद यह महल कभी कला मूर्तियों से सजा था। दुर्ग की दीवारें, गुफाएं और चट्टानी संरचनाएं दुश्मनों पर नजर रखने के लिए बनी सुरक्षा चौकियों से भरी पड़ी हैं।
पुरातत्वविदों के अनुसार, यहां पाए गए शिलालेख और गुफा चित्र गुप्त युग की कला को दर्शाते हैं, जबकि मुस्लिम संत सैयद जैन-उल-अबेदीन (हजरत मीरान साहिब बाबा) की कब्र मुख्य द्वार पर एक सांस्कृतिक मिश्रण का प्रतीक है।
चंद्रकांता का जादू- साहित्य से वास्तविकता तक
देवकीनंदन खत्री ने 1888 में ‘चंद्रकांता’ उपन्यास लिखा, जिसमें विजयगढ़ को नौगढ़ के युवराज विक्रम वीरेंद्र सिंह और राजकुमारी चंद्रकांता की प्रेम कहानी का केंद्र बनाया। खत्री का काशी नरेश ईश्वरी प्रसाद नारायण सिंह से गहरा संबंध था, जिसके चलते वे चकिया और नौगढ़ के जंगलों में विचरण करते थे। इस दुर्ग की रहस्यमयी गुफाओं और तिलस्मों ने उन्हें प्रेरित किया। आज भी पर्यटक यहां आकर उपन्यास के दृश्यों को जीवंत महसूस करते हैं – खासकर श्रावण मास में, जब कांवरिए शिवद्वार की यात्रा पर रुकते हैं।
चुनौतियां और भविष्य की उम्मीदें-
खंडहर होने के बावजूद, दुर्ग की स्थिति चिंताजनक है। भारी वर्षा और रखरखाव की कमी से दीवारें जर्जर हो रही हैं। विजयगढ़ दुर्ग न केवल एक ऐतिहासिक स्थल है, बल्कि प्रेम, रहस्य और साहस की अनंत गाथा है। यदि आप साहसिक यात्रा के शौकीन हैं, तो इस तिलस्मी दुनिया का दौरा जरूर करें!


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